क्रांतिकारी की कथा
‘क्रांतिकारी’
उसने उपनाम रखा था । खूब पढ़ा-लिखा युवक । स्वस्थ, सुन्दर । नौकरी भी अच्छी । विद्रोही
। मार्क्स-लेनिन के उद्धरण देता, चे-ग्वेवारा का खास भक्त ।
कॉफी
हाउस में काफी देर तक बैठता । खूब बातें करता । हमेशा क्रांतिकारिता के तनाव में रहता
। सब उलट-पुलट देना है । सब बदल देना है । बाल बड़े, दाढ़ी करीने से बढ़ाई हुई ।
विद्रोह
की घोषणा करता । कुछ करने का मौका ढूंढ़ता । कहता— “मेरे पिता की पीढ़ी को जल्दी मरना
चाहिए । मेरे पिता घोर दकियानूस, जातिवादी, प्रतिक्रियावादी हैं । ठेठ बुर्जुआ । जब
वे मरेंगे तब मैं न मुंडन कराऊंगा, न उनका श्राद्ध करूंगा । मैं सब परम्पराओं का नाश
कर दूंगा । चे-ग्वेवारा जिंदाबाद ।
कोई
साथी कहता, “पर तुम्हारे पिता तुम्हे बहुत प्यार करते हैं ।”
क्रांतिकारी
कहता, “प्यार? हां, हर बुर्जुआ क्रांतिकारिता को मारने के लिए प्यार करता है । यह प्यार
षड़यंत्र है । तुम लोग नहीं समझते । इस समय मेरा बाप किसी ब्राह्मण की तलाश में है ।
जिससे बीस-पच्चीस हजार रुपए लेकर उसकी लड़की से मेरी शादी कर देगा । पर मैं नहीं होने
दूंगा । मैं जाति में शादी करूंगा ही नहीं । मैं दूसरी जाति की, किसी नीच जाति की लड़की
से शादी करूंगा । मेरा बाप सिर धुनता बैठा रहेगा ।”
साथी
ने कहा, “अगर तुम्हारा प्यार किसी लड़की से हो जाए और संयोग से वो ब्राह्मण हो तो तुम
शादी करोगे न ?”
उसने
कहा, “हरगिज नहीं । मैं उसे छोड़ दूंगा । कोई क्रांतिकारी अपनी जाति की लड़की से न प्यार
करता है, न शादी । मेरा प्यार है एक कायस्थ लड़की से । मैं उससे शादी करूंगा ।”
एक
दिन उसने कायस्थ लड़की से कोर्ट में शादी कर ली । उसे लेकर अपने शहर आया और दोस्त के
घर पर ठहर गया ।
बड़े
शहीदाना मूड में था । कह रहा था, “आई ब्रोक देयर नेक । मेरा बाप इस समय सिर धुन रहा
होगा, मां रो रही होगी । मुहल्ले पड़ोस के लोगों को इकट्ठा करके मेरा बाप कह रहा होगा
‘हमारे लिए लड़का मर चुका’ । वह मुझे त्याग देगा । मुझे प्रापर्टी से वंचित कर देगा
। आई डोंट केयर । मैं कोई भी बलिदान करने को तैयार हूं । वह घर मेरे लिए दुश्मन का
घर हो गया । बट आई विल फाइट टू दि एंड-टू दी एंड ।
वह
बरामदे में तना हुआ घूमता । फिर बैठ जाता, कहता, “बस संघर्ष आ ही रहा है ।”
उसका
एक दोस्त आया । बोला, “तुम्हारे फादर कह रहे थे कि तुम पत्नी को लेकर सीधे घर क्यों
नहीं आए । वे तो काफी शांत थे । कह रहे थे, ‘लड़के और बहू को घर ले आओ ।”
वह
उत्तेजित हो गया, “हूं, बुर्जुआ हिपोक्रेसी । यह एक षड़यंत्र है । वे मुझे घर बुलाकर,
फिर अपमान करके, हल्ला करके निकालेंगे । उन्होने मुझे त्याग दिया है तो मैं क्यों समझौता
करूं । मैं दो कमरे किराए पर लेकर रहूंगा ।”
दोस्त
ने कहा, “पर तुम्हे त्यागा कहां है ?”
उसने
कहा, “मैं सब जानता हूं- आई विल फाइट ।”
दोस्त
ने कहा, “जब लड़ाई है ही नहीं तो फाइट क्या करोगे ?”
क्रांतिकारी
कल्पनाओं में था । हथियार पैने कर रहा था । बारूद सुखा रहा था । क्रांति का निर्णायक
क्षण आने वाला है । मैं वीरता से लड़ूंगा । बलिदान हो जाऊंगा ।
तीसरे
दिन उसका एक खास दोस्त आया । उसने कहा, “तुम्हारे माता-पिता टैक्सी लेकर तुम्हे लेने
आ रहे हैं । इतवार को तुम्हारी शादी के उपलक्ष्य में भोज है । यह निमंत्रण-पत्र बांटा
जा रहा है ।”
क्रांतिकारी
ने सर ठोंक लिया । पसीना बहने लगा । पीला हो गया । बोला, “हाय, सब खत्म हो गया । जिंदगी
भर की संघर्ष-साधना खत्म हो गयी । नो स्ट्रगल । नो रेवोल्यूशन । मैं हार गया । वे मुझे
लेने आ रहे हैं । मैं लड़ना चाहता था । क्रांतिकारिता ! मेरी क्रांतिकारिता ! देवी,
तू मेरे बाप से मेरा तिरस्कार करवा । चे-ग्वेवारा ! डियर चे !”
उसकी
पत्नी चतुर थी । वह दो-तीन दिनों से क्रांतिकारिता देख रही थी और हंस रही थी । उसने
कहा, “डियर एक बात कहूं । तुम क्रांतिकारी नहीं हो ।”
उसने
पूछा, “नहीं हूं । फिर क्या हूं ।”
पत्नी
ने कहा, “तुम एक बुर्जुआ बौड़म हो । पर मैं तुम्हे प्यार करती हूँ ।”
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