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16 November, 2013

हरिशंकर परसाई की कहानी





क्रांतिकारी की कथा
‘क्रांतिकारी’ उसने उपनाम रखा था । खूब पढ़ा-लिखा युवक । स्वस्थ, सुन्दर । नौकरी भी अच्छी । विद्रोही । मार्क्स-लेनिन के उद्धरण देता, चे-ग्वेवारा का खास भक्त ।

कॉफी हाउस में काफी देर तक बैठता । खूब बातें करता । हमेशा क्रांतिकारिता के तनाव में रहता । सब उलट-पुलट देना है । सब बदल देना है । बाल बड़े, दाढ़ी करीने से बढ़ाई हुई ।

विद्रोह की घोषणा करता । कुछ करने का मौका ढूंढ़ता । कहता— “मेरे पिता की पीढ़ी को जल्दी मरना चाहिए । मेरे पिता घोर दकियानूस, जातिवादी, प्रतिक्रियावादी हैं । ठेठ बुर्जुआ । जब वे मरेंगे तब मैं न मुंडन कराऊंगा, न उनका श्राद्ध करूंगा । मैं सब परम्पराओं का नाश कर दूंगा । चे-ग्वेवारा जिंदाबाद ।
कोई साथी कहता, “पर तुम्हारे पिता तुम्हे बहुत प्यार करते हैं ।”

क्रांतिकारी कहता, “प्यार? हां, हर बुर्जुआ क्रांतिकारिता को मारने के लिए प्यार करता है । यह प्यार षड़यंत्र है । तुम लोग नहीं समझते । इस समय मेरा बाप किसी ब्राह्मण की तलाश में है । जिससे बीस-पच्चीस हजार रुपए लेकर उसकी लड़की से मेरी शादी कर देगा । पर मैं नहीं होने दूंगा । मैं जाति में शादी करूंगा ही नहीं । मैं दूसरी जाति की, किसी नीच जाति की लड़की से शादी करूंगा । मेरा बाप सिर धुनता बैठा रहेगा ।”

साथी ने कहा, “अगर तुम्हारा प्यार किसी लड़की से हो जाए और संयोग से वो ब्राह्मण हो तो तुम शादी करोगे न ?”
उसने कहा, “हरगिज नहीं । मैं उसे छोड़ दूंगा । कोई क्रांतिकारी अपनी जाति की लड़की से न प्यार करता है, न शादी । मेरा प्यार है एक कायस्थ लड़की से । मैं उससे शादी करूंगा ।”

एक दिन उसने कायस्थ लड़की से कोर्ट में शादी कर ली । उसे लेकर अपने शहर आया और दोस्त के घर पर ठहर गया ।

बड़े शहीदाना मूड में था । कह रहा था, “आई ब्रोक देयर नेक । मेरा बाप इस समय सिर धुन रहा होगा, मां रो रही होगी । मुहल्ले पड़ोस के लोगों को इकट्ठा करके मेरा बाप कह रहा होगा ‘हमारे लिए लड़का मर चुका’ । वह मुझे त्याग देगा । मुझे प्रापर्टी से वंचित कर देगा । आई डोंट केयर । मैं कोई भी बलिदान करने को तैयार हूं । वह घर मेरे लिए दुश्मन का घर हो गया । बट आई विल फाइट टू दि एंड-टू दी एंड ।
वह बरामदे में तना हुआ घूमता । फिर बैठ जाता, कहता, “बस संघर्ष आ ही रहा है ।”

उसका एक दोस्त आया । बोला, “तुम्हारे फादर कह रहे थे कि तुम पत्नी को लेकर सीधे घर क्यों नहीं आए । वे तो काफी शांत थे । कह रहे थे, ‘लड़के और बहू को घर ले आओ ।”

वह उत्तेजित हो गया, “हूं, बुर्जुआ हिपोक्रेसी । यह एक षड़यंत्र है । वे मुझे घर बुलाकर, फिर अपमान करके, हल्ला करके निकालेंगे । उन्होने मुझे त्याग दिया है तो मैं क्यों समझौता करूं । मैं दो कमरे किराए पर लेकर रहूंगा ।”

दोस्त ने कहा, “पर तुम्हे त्यागा कहां है ?”

उसने कहा, “मैं सब जानता हूं- आई विल फाइट ।”

दोस्त ने कहा, “जब लड़ाई है ही नहीं तो फाइट क्या करोगे ?”
क्रांतिकारी कल्पनाओं में था । हथियार पैने कर रहा था । बारूद सुखा रहा था । क्रांति का निर्णायक क्षण आने वाला है । मैं वीरता से लड़ूंगा । बलिदान हो जाऊंगा ।

तीसरे दिन उसका एक खास दोस्त आया । उसने कहा, “तुम्हारे माता-पिता टैक्सी लेकर तुम्हे लेने आ रहे हैं । इतवार को तुम्हारी शादी के उपलक्ष्य में भोज है । यह निमंत्रण-पत्र बांटा जा रहा है ।”

क्रांतिकारी ने सर ठोंक लिया । पसीना बहने लगा । पीला हो गया । बोला, “हाय, सब खत्म हो गया । जिंदगी भर की संघर्ष-साधना खत्म हो गयी । नो स्ट्रगल । नो रेवोल्यूशन । मैं हार गया । वे मुझे लेने आ रहे हैं । मैं लड़ना चाहता था । क्रांतिकारिता ! मेरी क्रांतिकारिता ! देवी, तू मेरे बाप से मेरा तिरस्कार करवा । चे-ग्वेवारा ! डियर चे !”
उसकी पत्नी चतुर थी । वह दो-तीन दिनों से क्रांतिकारिता देख रही थी और हंस रही थी । उसने कहा, “डियर एक बात कहूं । तुम क्रांतिकारी नहीं हो ।”

उसने पूछा, “नहीं हूं । फिर क्या हूं ।”
पत्नी ने कहा, “तुम एक बुर्जुआ बौड़म हो । पर मैं तुम्हे प्यार करती हूँ ।”

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